बर्फ की ढेर की तरह पिघल जाते हैं
पड़ता है जब बेबसी से सामना
दिल के अरमान घुट कर रह जाते हैं.
मैं तो अपनी बेबसी पर शर्मिंदा नहीं
न जाने कहा से लोग मुझे
इसका एहसास दिलाने चले आते हैं,
सर उठा कर मैं चलूँ भी तो कैसे
कुछ तो बेगाने तो कुछ अपने भी
सर को उठाने से पहले ही झुका जाते हैं
बेगानों के नश्तर तो मैं सह भी लूं
मगर,
अपनों के दिए ज़ख्म आँखों से
आंसू बन कर छलक आते हैं.